अपने पराए
अपने पराए
किसको अपना हम कहें, किसको कहें पराया आज तलक ये भेद गहन, हमको समझ ना आया।
खून के रिश्ते हो रहे, अब तो खून के प्यासे भाई लड़ते भाई से, लेकर छुरी गंडासे।
माया सबको रिझा रही, नहीं रिश्तों की बात वक्त पड़े रिश्तेदार हैं, वरना मारो लात।
कहने को सब मिल रहे चाचा, मामा, ताऊ दमड़ी अगर ना पास हो, कन्नी काटो भाऊ।
मात पिता बूढ़े भए, औलाद समझ रही बोझ कैसे घर खाली करें, दिन रात चल रही खोज।
ईर्ष्या द्वेष हर घर पले, लूटा है सुख चैन कैसे नीचा दिखलाएं, यही सोच दिन रैन।
रिश्तों में मिठास की बहुत कमी है आज दूजे के सुख से जलें अपने सुख की आस।
कलियुग के इस दौर में रिश्ता एक अनमोल कृष्ण सुदामा की तरह मित्रता का ना कोई मोल।।
आभार – नवीन पहल – २४.०८.२०२३ 🙏🙏
# दैनिक प्रतियोगिता हेतु कविता
सीताराम साहू 'निर्मल'
25-Aug-2023 02:57 PM
बहुत सुंदर
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Shashank मणि Yadava 'सनम'
25-Aug-2023 08:12 AM
बहुत ही सुंदर और बेहतरीन अभिव्यक्ति
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